आम दिनों में हमारे देश में जितने लोग रोजाना ट्रेन में सफर करते हैं, कई देशों की कुल आबादी उससे कहीं कम है। ऐसे में ट्रेन के सफर के दौरान भांति-भांति के अनुभव होते रहते हैं। कुछ सहयात्रियों के व्यवहार से तो कुछ भारतीय रेलवे के सौजन्य से। फरवरी में भांजी की शादी में बिहार गया था, फिर होली में जयपुर गया था। उसके बाद से तो कोरोनावायरस की वैश्विक महामारी ने सब कुछ उलट पुलट कर रख दिया। लंबे समय तक ट्रेनों के पहिए थमे रहे। अब कहीं जाकर इक्की-दुक्की ट्रेन शुरू हो पाई है। हर रूट पर अमूमन पुरानी ट्रेनों को ही नई बोतल में पुरानी शराब की तरह पेश किया जा रहा है।
पिछले दिनों इसी तर्ज पर कई ट्रेनों को चलाने की घोषणा हुई तो मैंने भी दीपावली पर लखनऊ से जयपुर जाने के लिए न्यू जलपाईगुड़ी-उदयपुर सिटी एक्सप्रेस साप्ताहिक स्पेशल ट्रेन में रिजर्वेशन करवा लिया था। कुल मिलाकर सफर अच्छा रहा, मगर यह रेलवे का कोई चमत्कार नहीं था, रूट पर ट्रेनें ही नहीं थीं, सो डिस्टर्बेंस की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। वापसी में लखनऊ से जयपुर के लिए मेरी अनचाही फेवरेट ट्रेन मरुधर एक्सप्रेस ही बतौर स्पेशल ट्रेन इकलौती ट्रेन थी, सो दीपावली के अगले दिन वापसी के लिए इसमें रिजर्वेशन कराने की मजबूरी थी।
खैर, सब कुछ ठीक चल रहा था कि दीपावली की सुबह साढ़े नौ बजे एसएमएस आया कि अपरिहार्य कारणों से 15 नवंबर को जोधपुर से वाराणसी जाने वाली मरुधर एक्सप्रेस स्पेशल ट्रेन कैंसिल कर दी गई है। असुविधा के लिए खेद है। मैसेज पढ़ते ही मुझे दिन में ही तेरहों तारेगण नजर आने लगे। समझ नहीं पा रहा था कि कैसे जाना हो पाएगा। अवकाश के बाद निश्चित समय पर न लौटने से अविश्वास की स्थिति पैदा हो जाती है और वजह चाहे जो कुछ भी हो, यह मुझे पसंद नहीं है। विकल्पों पर माथापच्ची में लगा रहा। इंटरनेट पर जयपुर से लखनऊ के लिए न तो यूपी रोडवेज की कोई बस दिख रही थी और न ही राजस्थान रोडवेज की। ऐसे में जयपुर से आगरा और फिर वहां से लखनऊ की दौड़ लगाने की प्लानिंग के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। यही सब सोच-विचार में लगा था कि करीब ग्यारह बजे रेलवे का एसएमएस आया कि 15 नवंबर को जोधपुर-वाराणसी मरुधर एक्सप्रेस स्पेशल ट्रेन के कैंसिलेशन का मैसेज तकनीकी गड़बड़ी के कारण डिलीवर हो गया था। यह मैसेज पढ़ने के बाद जान में जान आई कि अब अनावश्यक भाग-दौड़ नहीं करनी पड़ेगी।
...मगर यह मैसेज मेरे जैसे हजारों यात्रियों के पास पहुंचा होगा और न जाने उन्हें कितनी मानसिक यंत्रणा झेलनी पड़ी होगी। तय सफर में अचानक कोई बदलाव ऐसे ही परेशान करने वाला होता है और कोरोना काल में इस तरह की बाध्यता किसी को किस कदर परेशान कर सकती है, इसकी कल्पना ही विचलित कर देती है। ऐसे में भारतीय रेलवे के जिम्मेदारों को कोई भी मैसेज भेजने से पहले अच्छी तरह से सोच लेना चाहिए। यह किसी फिल्मी सीन का गाना नहीं है कि आप सॉरी कहकर निकल जाएं...वो तो मैंने झूठ बोला था।