दिल्ली से प्रकाशित एक प्रमुख हिंदी दैनिक के नियमित स्तंभ---रंग ए जिंदगानी---में गुरुवार को प्रकाशित वजीर आगा की यह रचना मुझे अच्छी लगी, शायद आपको भी भाए।
धूप के साथ गया, साथ निभाने वाला
अब कहां आएगा वो, लौट के आने वाला।
रेत पर छोड़ गया, नक्श हजारों अपने
किसी पागल की तरह, नक्श मिटाने वाला।
सब्ज शाखें कभी ऐसे नहीं चीखती हैं,
कौन आया है, परिंदों को डराने वाला।
शबनमी घास, घने फूल, लरजती किरणें
कौन आया है, खजानों को लुटाने वाला।
अब तो आराम करें, सोचती आंखें मेरी
रात का आखिरी तारा भी है जाने वाला।
Friday, March 19, 2010
Friday, March 5, 2010
ख्वाब खुशबू के घर में रहते हैं
दिल्ली से प्रकाशित हिंदी दैनिक के गुरुवार के अंक में ---रंग-ए-जिंदगानी---कॉलम के तहत प्रसिद्ध शायर शीन काफ निजाम साहब की कुछ पंक्तियां प्रकाशित की गई हैं। आशा है आपको भी भाएंगी। लीजिए....गौर फरमाइए-----
वो कहां चश्मे-तर में रहते हैं,
ख्वाब खुशबू के घर में रहते हैं।
शहर का हाल जा के उनसे पूछ,
हम तो अक्सर सफर में रहते हैं।
मौसमों के मकान सूने हैं,
लोग दीवारो-दर में रहते हैं।
अक्स हैं उनके आसमानों पर,
चांद तारे तो घर में रहते हैं।
हमने देखा है दोस्तों को निजाम
दुश्मनों के असर में रहते हैं।
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