
जन्म दिवस पर संजीव मिश्र को श्रद्धांजलि
बहुमुखी प्रतिभा के धनी संजीव मिश्र पिछले वर्ष 28 जनवरी को हम सबको असमय अलविदा कह गए। पेशे से पत्रकार संजीव मिश्र ने कहानियां, व्यंग्य, समीक्षा, अनुवाद, गीत-गजल, कविता, फीचर लेखन सभी विधाओं में अपनी उपस्थिति जताई और प्रशंसकों ही नहीं, आलोचकों के बीच भी चर्चा में रहे। कुछ शब्द जैसे मेज, लहर भर समय और मिले बस इतना ही नाम से उनके तीन कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। गंगा के जल से गंगा को अघ्र्य देने के धर्म को निभाते हुए उनके काव्य संग्रह `मिले बस इतना ही´ से कुछ कविताएं प्रस्तुत हैं:
उचित दूरी बनाए रखें
जितने स्विच ऑन करो
उतना ही बढ़ता है
मन में अंधेरा
इतनी कितनी घुटन
कि सांस लेने भर के लिए
हर किसी को
सीखना पड़ता है
प्राणायाम
गलत तय हो चुका है
बिना हासिल का
हर जोड़
भुलाई जा चुकी है
शब्दों की चौकड़ी
भरने में लगे हैं सब
अंकों को सु-डू-कू के
जाल में
कस कर बुनते।
नेटवरकिंग
अपने ही चारों ओर
कि कहीं भर न ले
बांहों में
जिंदगी की कोई
छोटी सी सच्चाई
लिखी है सामने भागती
गाड़ी पर चेतावनी
`उचित दूरी बनाए रखें´
यह नहीं लिखा
कि कितनी दूरी
उचित है
और अजीब बात यह है
कि इतनी बड़ी
आबादी में
दूरी बनाए रखना
उचित है!
बस इतना
चिता से उठी
प्रखर
प्रभामय
आकाश की ओर लपकी
लपट-सा
जीवन
धुली धूप में
थमी हवा की
शीतलता सी
मौत
और अपने होने का बोध
मिले
बस इतना ही।