Saturday, February 20, 2010

एक तिनका है बहुत तेरे लिए

दिल्ली से प्रकाशित हिंदी दैनिक हिंदुस्तान के सेंट्रल पेज पर प्रतिदिन किसी खास कवि की किसी अथॅपूणॅ रचना से कुछ पंक्तियां छपती हैं। अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध ने इन पंक्तियों में बहुत ही साधारण लहजे में काफी महत्वपूणॅ बातें कह दी हैं। आप भी आनंद लीजिए -

मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ,
एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा।

आ अचानक दूर से उड़ता हुआ,
एक तिनका आंख में मेरी पड़ा।

मैं झिझक उठा हुआ बेचैन सा,
लाल होकर आंख भी दुखने लगी।

मूंठ देने लोग कपड़े की लगे,
ऐंठ बेचारी दबे पांव भागने लगी।

जब किसी ढब से निकल तिनका गया,
तब समझ ने यों मुझे ताने दिए।

ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए।

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