Friday, March 19, 2010

अब कहां आएगा वो....

दिल्ली से प्रकाशित एक प्रमुख हिंदी दैनिक के नियमित स्तंभ---रंग ए जिंदगानी---में गुरुवार को प्रकाशित वजीर आगा की यह रचना मुझे अच्छी लगी, शायद आपको भी भाए।

धूप के साथ गया, साथ निभाने वाला
अब कहां आएगा वो, लौट के आने वाला।

रेत पर छोड़ गया, नक्श हजारों अपने
किसी पागल की तरह, नक्श मिटाने वाला।

सब्ज शाखें कभी ऐसे नहीं चीखती हैं,
कौन आया है, परिंदों को डराने वाला।

शबनमी घास, घने फूल, लरजती किरणें
कौन आया है, खजानों को लुटाने वाला।

अब तो आराम करें, सोचती आंखें मेरी
रात का आखिरी तारा भी है जाने वाला।

1 comment:

Udan Tashtari said...

आभार इस रचना को साझा करने का.