Friday, September 1, 2017
फणीश्वरनाथ के साथ यूं जुड़ा रेणु
मेरा उपनाम सौभाग्य या दुर्भाग्यवश मेरा घराऊ नाम भी है । जन्मते ही घर में ऋण हुआ, इसलिए दादी प्यार से रिनुवां कहने लगीं। रिनुवां से रुनु और अंतत: " रेणु " ।
जब तुकबंदी करने लगा, तब छंद के अंत में अनायास ही - " कवि रेणु कहे कब रैन कटे, तमतोम घटे ..." जुड़ गया । और उपनाम की प्रेरणा लेखकों को शायद सहस्रनामधारी विष्णु महाराज से ही मिली होगी ।
- फणीश्वरनाथ रेणु ( वर्षों पहले कादम्बिनी में)
19 July 2017
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