Thursday, October 19, 2017

सावन के बहाने ...


मर्द’ फिल्म में अमिताभ बच्चन का डायलॉग ‘मर्द को दर्द नहीं होता’ भले ही लोगों की जुबान पर चढ़ गया हो, लेकिन भावनाओं की कसौटी पर परखें तो यह सही प्रतीत नहीं होता। पुरुष के सीने में भी एक दिल होता है और उसकी धड़कन पर प्रेम, दया, करुणा, विरह जैसी भावनाओं का असर कुछ कम नहीं होता। तभी तो महाकवि कालिदास ने ‘मेघदूतम्’ रचकर विरह की ज्वाला में जल रहे यक्ष की पीड़ा को अमर कर दिया। यही नहीं, गोस्वामी तुलसीदास को भी सीता की विरह में जंगल-जंगल भटक रहे श्रीराम की सर्वाधिक पीड़ा का अहसास वर्षा ऋतु में ही हुआ और उन्होंने लिखा- ‘ घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा॥ ’ यह दीगर बात है कि न तो कालिदास ने विरह की ज्वाला में जल रही यक्षिणी की पीड़ा को शब्द दिए और न ही तुलसी बाबा सीता मैया की ऐसी व्यथा को रामचरितमानस में शब्द दे पाए। संभव है, यक्षिणी और सीता मैया की पीड़ा शब्दों में समेटे जाने लायक न रही हो। खैर, मनोभावनाएं हैं, इनका विस्तार कहां किस सीमा तक होगा, इसकी लकीर खींचना संभव भी नहीं है। आज भी अनगिनत प्राणी विभिन्न कारणों से अपने प्रियजनों से दूर रहने को विवश हैं। इस स्थिति में बदलाव की गुंजाइश भी नहीं है, लेकिन शादी के करीब दो दशक तक साथ रहने के बाद पिछले पांच-छह महीने से पत्नी और बच्चों से करीब हजार किलोमीटर दूर रहने को विवश मित्र से हुई बातचीत के बाद शब्दों का सोता कुछ यूं फूट निकला... 16 July 2017

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