Thursday, November 3, 2011

अज्ञेय की दो लघु कविताएं

स्वनामधन्य कवि सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय की बहुपठित दो लघु कविताएं प्रस्तुत हैं। इस कविता के लिखे जाने से अब तक गंगा-यमुना में कितना पानी बह चुका है, लेकिन इनके निहितार्थ अब तक नहीं बदले हैं। आप भी इनका आस्वादन करें...
सांप

तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना
भी तुम्हें नहीं आया।
एक बात पूछूं, उत्तर दोगे
तब कैसे सीखा डंसना
विष कहां से पाया?


पुल

जो पुल बनाएंगे
वे अनिवार्यत: पीछे रह जाएंगे
सेनाएं हो जाएंगी पार
मारे जाएंगे रावण
जयी होंगे राम
जो निर्माता रहे इतिहास में
बंदर कहलाएंगे

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