Monday, October 10, 2011

चांदनी में नहाने के दिन आ गए...

अपने देश में सदियों से आश्विन पूर्णिमा शरद पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है। इस दिन मंदिरों में देव विग्रहों को धवल वस्त्र धारण कराए जाते हैं तथा श्वेत पुष्पों से शृंगार किया जाता है। अमृतमयी चंद्र-किरणों से अभिसिक्त खीर प्रसादस्वरूप वितरित की जाती है। तरुण समाज गुलाबी नगर में पिछले 40 वर्षों से शरद पूर्णिमा से ठीक पहले आने वाले शनिवार की रात गीतों के कार्यक्रम 'गीत चांदनीÓ का आयोजन कर रही है। इसी कड़ी में गत 8 अक्टूबर को जय क्लब लॉन में गीतों की महफिल सजाई गई। इसमें कवियों-कवयित्रियों ने एक से बढ़कर एक गीतों की प्रस्तुति दी। सहारनपुर से आईं वरिष्ठ कवयित्री इंदिरा गौड़ ने जब यह रचना सुनाई तो श्रोता जैसे मंत्रमुग्ध हो उठे। उनकी रचना की इस चांदनी में आप भी करें अवगाहन.....


चांदनी में नहाने के दिन आ गए...
कतरा कतरा झड़े चांद आकाश से,
है कठिन छूटना जादुई पाश से,
रात के मुसकुराने के दिन आ गए।
चांदनी में नहाने के ...
प्यार के साज पर नेह भीगी छुअन,
यामिनी भर झड़ी हारसिंगार बन,
डूबकर पार जाने के दिन आ गए।
चांदनी में नहाने के...
ओढ़कर ओढऩी चांद-तारों जड़ी,
खिलखिलाती निशा दे रही है तड़ी,
तम को ठेंगा दिखाने के दिन आ गए।
चांदनी में नहाने के...
तोड़कर तट बही रातभर कौमुदी,
पी गया सुबह दिनमान सारी नदी,
भोर तक गुनगुनाने के दिन आ गए।
चांदनी में नहाने के...

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