Friday, January 4, 2008

ताराप्रकाश जोशी और रत्न कुमार सांभरिया को राजस्थान पत्रिका सृजनात्मक अवाडॅ

राजस्थान के प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका की ओर से प्रतिवषॅ साहित्य के क्षेत्र में सृजनात्मक लेखन के लिए दिए जाने पुरस्कारों के तहत वषॅ २००७ का सवॅश्रेष्ठ कविता का पुरस्कार जयपुर के वरिष्ठ अथ च प्रख्यात कवि व गीतकार ताराप्रकाश जोशी और सवॅश्रेष्ठ कहानी का पुरस्कार कथाकार रत्न कुमार सांभरिया को दिया जाएगा। जोशी के लगभग आधा दजॅन कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उन्हें यह पुरस्कार १४ अक्टूबर २००७ को राजस्थान पत्रिका के रविवारीय परिशिष्ट में प्रकाशित उनकी कविता-बेटी की किलकारी-के लिए प्रदान किया जाएगा। सांभरिया को यह पुरस्कार राजस्थान पत्रिका के २७ मई २००७ के रविवारीय परिशिष्ट में प्रकाशित उनकी कहानी-खेत-के लिए दिया जाएगा। दोनों साहित्यकारों को पुरस्कार के रूप में ग्यारह-ग्यारह हजार रुपए और प्रशस्ति पत्र प्रदान किए जाएंगे। ये पुरस्कार उन्हें ६ जनवरी को होने वाले पं. झाबरमल्ल शरमा स्मृति व्याख्यानमाला के तहत आयोजित होने वाले समारोह में प्रदान किए जाएंगे।
पिछले ग्यारह वषॅ से राजस्थान पत्रिका सृजनात्मक पुरस्कार कहानी व कविता वगॅ में निरंतर प्रदान किए जा रहे हैं। कविता वगॅ में पूवॅ में पुरस्कृत होने वालों में हैं - गोपालदास नीरज, मंगल सक्सेना, हरीश करमचंदाणी, भगवतीलाल व्यास, माधव नागदा, रामनाथ कमलाकर, गुरमीत बेदी, गोपाल गगॅ, अम्बिका दत्त, गोविंद माथुर और उमेश अपराधी। कहानी वगॅ में यादवेंद्र शरमा चंद्र, से. रा. यात्री, सावित्री परमार, यश गोयल, ज्ञान प्रकाश विवेक, साबिर हुसैन, मुरलीधर वैष्णव, सावित्री रांका, कुंदन सिंह परिहार, महीप सिंह और संगीता माथुर इससे पहले पुरस्कृत हो चुके हैं।

तो अब आप पढ़िए आदरणीय ताराप्रकाश जोशी की कविता या गुनगुनाइये यह गीत (क्योंकि यह सहज ही गेय भी है) जिसके लिए उन्हें पुरस्कृत किया जाएगा। इस कविता में कन्याभ्रूण हत्या से मानवता को होने वाले नुकसान और बेटियों की महत्ता पर कवि ने अंतमॅन की संवेदना को स्वर देने की सफल कोशिश की है।

बेटी की किलकारी

कन्या भ्रूण अगर मारोगे
मां दुरगा का शाप लगेगा।
बेटी की किलकारी के बिन
आंगन-आंगन नहीं रहेगा।
जिस घर बेटी जन्म न लेती
वह घर सभ्य नहीं होता है।
बेटी के आरतिए के बिन
पावन यज्ञ नहीं होता है।
यज्ञ बिना बादल रूठेंगे
सूखेगी वरषा की रिमझिम।
बेटी की पायल के स्वर बिन
सावन-सावन नहीं रहेगा।
आंगन-आंगन नहीं रहेगा।

जिस घर बेटी जन्म न लेती
उस घर कलियां झर जाती है।
खुशबू निरवासित हो जाती
गोपी गीत नहीं गाती है।
गीत बिना बंशी चुप होगी
कान्हा नाच नहीं पाएगा।
बिन राधा के रास न होगा
मधुबन-मधुबन नहीं रहेगा।
आंगन-आंगन नहीं रहेगा।

जिस घर बेटी जन्म न लेती,
उस घर घड़े रीत जाते हैं।
अन्नपूरणा अन्न न देती
दुरभिक्षों के दिन आते हैं।
बिन बेटी के भोर अलूणी
थका-थका दिन सांझ बिहूणी।
बेटी बिना न रोटी होगी
प्राशन-प्राशन नहीं रहेगा
आंगन-आंगन नहीं रहेगा

जिस घर बेटी जन्म न लेती
उसको लक्षमी कभी न वरती।
भव सागर के भंवर जाल में
उसकी नौका कभी न तरती।
बेटी की आशीषों में ही
बैकुंठों का वासा होता।
बेटी के बिन किसी भाल का
चंदन-चंदन नहीं रहेगा।
आंगन-आंगन नहीं रहेगा।

जिस घर बेटी जन्म न लेती
वहां शारदा कभी न आती।
बेटी की तुतली बोली बिन
सारी कला विकल हो जाती।
बेटी ही सुलझा सकती है,
माता की उलझी पहेलियां।
बेटी के बिन मां की आंखों
अंजन-अंजन नहीं रहेगा।
आंगन-आंगन नहीं रहेगा।

जिस घर बेटी जन्म न लेगी
राखी का त्यौहार न होगा।
बिना रक्षाबंधन भैया का
ममतामय संसार न होगा।
भाषा का पहला स्वर बेटी
शब्द-शब्द में आखर बेटी।
बिन बेटी के जगत न होगा,
सजॅन, सजॅन नहीं रहेगा।
आंगन-आंगन नहीं रहेगा।

जिस घर बेटी जन्म न लेती
उसका निष्फल हर आयोजन।
सब रिश्ते नीरस हो जाते
अथॅहीन सारे संबोधन।
मिलना-जुलना आना-जाना
यह समाज का ताना-बाना।
बिन बेटी रुखे अभिवादन
वंदन-वंदन नहीं रहेगा।
आंगन-आंगन नहीं रहेगा।

कवि और गीतकार ताराप्रकाश जोशी की रचनाओं में सहज ही पाठक-श्रोता के हृदय में समा जाने की क्षमता है, जिससे आप अब तक परिचित हो चुके होंगे। इस ब्लॉग पर भविष्य में उनकी रचनाओं का रसास्वादन कराने का वादा है मेरा।
कथाकार रत्नकुमार सांभरिया ने अपनी कहानी-खेत-में किन भावनाओं को छुआ है कि यह कथा पुरस्कार की हकदार बनी, इसकी उत्कंठा मुझे भी है, आपको भी होगी। अस्तु, शीघ्र ही उनकी यह पुरस्कृत कहानी और अन्य प्रतिनिधि कहानियां आपके सामने प्रस्तुत करूंगा। दोनों साहित्यकारों को मेरी अथ च आप सभी की ओर से कोटिशः बधाई और मंगलकामनाएं। तो आज बस इतना ही।
(फोंट की अनुपलब्धता या फिर मेरी उनके बारे में अज्ञानता के कारण कविता में कुछ अशुद्धियां रह गई हैं, इसके लिए माफी चाहता हूं)

1 comment:

Ashish Maharishi said...

रचना सुंदर है मंगलम भाईा