Wednesday, January 23, 2008

बी पॉजिटिव, बी एवरयंग


आनंद ही है देव आनंद के चिरयौवन का रहस्य

जैसा कि मैंने पहले बताया था कि इन दिनों गुलाबी नगरी में साहित्य का महाकुंभ-विरासत साहित्य उत्सव-आयोजित किया जा रहा है। देशभर से विभिन्न भाषाओं के लेखक इसमें शिरकत कर रहे हैं। इनके साथ विदेशी विद्वान और नामी-गिरामी प्रकाशक भी साहित्य और साहित्यकारों से जुड़ी विभिन्न संभावनाओं पर विचार-विमशॅ कर रहे हैं। अब आयोजन बड़ा है तो साहित्य जगत की हस्तियों के बावजूद सेलिब्रिटीज को इग्नॉर कैसे किया जा सकता है। सो, सेलिब्रिटीज भी बुलाए जा रहे हैं। इसी कड़ी में बुधवार को मैन ऑफ द ओकेजन बने रहे फिल्मी दुनिया के चिरयुवा देव आनंद साहब।
आयोजकों ने देव आनंद साहब से बातचीत के लिए चेन्नई की युवा लेखिका और नतॅकी तथा दिखने में कमसिन और आकषॅक बाला तिशानी दोषी को अप्वायंट किया हुआ था। करीब एक घंटे तक चले कायॅक्रम में तिशानी ने देव आनंद साहब के जीवन, फिल्मों और उनकी आत्मकथा-रोमांसिंग विद लाइफ- के बारे में बातचीत की। श्रोताओं की जिज्ञासाओं से भरे सवालों के देव साहब ने बखूबी जवाब दिए। पूरी बातचीत के दौरान मैं जितना समझ पाया वह यह था कि पॉजिटिवनेस की ऊरजा इस शख्स में कूट-कूटकर भरी हुई है और वे अपने चाहने वालों को भी एक ही संदेश देते हैं-बी पॉजिटिव ऑलवेज़।
उन्होंने कहा कि 1943 में लाहौर के गवनॅमेंट कॉलेज से इंग्लिश में बीए ऑनसॅ और एमए करने के बाद जब वे बॉम्बे (आज की मुंबई) आए थे, तो उनकी जेब में महज 13 रुपए थे, लेकिन उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, हिम्मत हारने का तो सवाल ही नहीं था, दो साल तक जमकर संघषॅ किया, फिर कदम आगे बढ़ते गए और देव साहब एक के बाद सफलता के परचम लहराते रहे। उन्होंने कहा कि वे कम्प्यूटर नहीं जानते, इसलिए उन्होंने अपनी आत्मकथा की पांडुलिपि कलम से ही लिखी है। जब वे इसे लिखने बैठते थे तो मन में और कोई ख्याल आता ही नहीं था। एक बार दिल से ठान लो तो कुछ भी मुश्किल नहीं होता। उनका कहना था कि जीवन के किसी दौर में कठिनाई तभी घर बना पाती है, जब हम अपने दिमाग में उसे पैठ बनाने की छूट देते हैं। ऐसा नहीं करने पर कोई भी बाधा हमें मंजिल तक पहुंचने से नहीं रोक सकती। अपनी एचीवमेंट से आदमी को कभी संतुष्ट नहीं होना चाहिए और इससे भी बेहतर करने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।
अपने शरमीले स्वभाव के बारे में पूछने पर देव आनंद साहब का कहना था कि यह एक अच्छा गुण है औऱ आज भी मेरे सामने कोई कमसिन हसीना आ जाए तो मैं शरमा जाऊंगा।
55 साल बाद अपनी लाहौर यात्रा की चरचा छिड़ने पर देव साहब भावुक हो उठे। उन पलों को याद करते हुए उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पाक प्रधानमंत्री नवाजशरीफ औऱ भारत-व पाकिस्तान में सड़क के किनारे खड़ी भीड़ के स्वागत के क्षणों को भी याद किया। उन्होंने बताया कि इस यात्रा के दौरान वे लाहौर गवनॅंमेंट कॉलेज भी गए, जहां के छात्र-छात्राओं ने उन्हें हृदय से प्यार किया। देव आनंद ने फिल्म डायरेक्टर और अपने सबसे अजीज दोस्त गुरुदत्त से जुड़े संस्मरण भी श्रोताओं से शेयर किए। देव आनंद साहब ने नेपाल के तत्कालीन राजा महेंद्र, वीरेंद्र और ज्ञानेंद्र से जुड़े संस्मरण भी सुनाए।
उनका कहना था कि बुरे अनुभवों को न तो दिमाग में रखो और न आत्मा में उतरने दो। थिंकिंग ऑफ प्रेजेंट-हेयर एंड नाऊ-हमेशा अच्छा सोचो रहो और वतॅमान में जिओ।
फिल्मों के बारे में उनकी बेबाक राय थी कि जो फिल्म कोई संदेश न दे सके, वह फिल्म बेकार है औऱ उसे फिल्म कहलाने का हक नहीं है। लेकिन फिल्म में संदेश ही होना चाहिए, उपदेश नहीं। दुनिया में कोई भी किसी का लेक्चर सुनना नहीं चाहता क्योंकि वह समझता है कि मैं ज्यादा जानता हूं। उन्होंने बताया कि वे कुछ ही दिनों में अपनी नई फिल्म-चाजॅशीट-पर काम करेंगे। इसके अलावा वे अंग्रेजी में भी एक फिल्म बनाएंगे, ताकि पश्चिम वाले भी पूरब की क्वालिटी को देखें-परखें। बात-बेबात छींटाकशी करने वालों पर देव आनंद का बस इतना ही कहना था कि वही बोलेंगे जिनके पास वक्त है और काम नहीं है, जो व्यस्त हैं, वे कैसे बोलेंगे।
किताबों से देव साहब को विशेष प्रेम है और वे स्वाध्याय के तगड़े हिमायती हैं। उन्होंने कहा कि जो आपको किताबों ने दिया है, आप उसी को जी रहे हैं। आदमी को अच्छी किताबें जरूर पढ़नी चाहिए औऱ जब भी समय मिले, उसका सदुपयोग पढ़ने में करना चाहिए। एडूकेट योरसेल्फ ऐज यू कैन। उनका कहना था कि अच्छी किताबों पर फिल्में बनना सोने पे सुहागा के समान है। मोशन फिल्म मेकिंग को उन्होंने पिछली शताब्दी की सबसे महत्वपूणॅ खोज बताया। देव साहब ने कहा कि फिल्में क्या नहीं दिखाती हैं-प्रेम कहानी, विरह व्यथा, हृदय की पीड़ा, प्राकृतिक दृश्य औऱ भी वह सब कुछ जो आप देखना चाहते हैं और जिसे देखने के बाद आप तरो-ताजा हो उठते हैं। उनका कहना था कि अच्छी कहानी अच्छी फिल्म की आत्मा होती है। यह पूरी तरह से डायरेक्टर की तपस्या का परिणाम होती है। वह ध्यान रखता है कि अभिनेता, अभिनेत्री, संवाद, नृत्य, स्टोरी, सीन, सिचुएशन और भी कई सारी बातों को किस तरह पेश करना है कि दशॅकों को ढाई घंटे तक मनोरंजन दिया जा सके।
तकरीबन डेढ़ घंटे देव साहब के सान्निध्य में रहने के दौरान मैंने यही पाया कि 26 सितंबर 1923 को पैदा हुए इस इंसान में जिंदादिली का माद्दा कूट-कूटकर भरा हुआ है। चाहे पत्रकारों के सवाल हों या ऑटोग्राफ लेने वालों की भीड़ या फिर कायॅक्रम के दौरान श्रोताओं के सवाल, किसी भी क्षण उनके चेहरे पर तनाव का नामोनिशान नहीं था। इतनी ख्याति मिलने के बाद भी आम आदमी की कद्रदानी इस कदर कि बेबाक कहा कि कि मैं भी आप जैसा ही हूं। आज भी कोई फोन करता है तो लंबे-चौड़े स्टाफ के अमले के बावजूद खुद ही फोन उठाता हूं, कोई मिलना चाहे तो कभी मना नहीं करता, आखिर अपने चाहने वाले को मना करने का अधिकार मुझे किसने दिया है। कोई कुछ पूछना चाहे तो उसकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए हर पल तत्पर। पूरे कायॅक्रम के दौरान उनका दाशॅनिक अंदाज देखते ही बनता था। एवरयंग-चिरयुवा होने के सवाल पर देव साहब का कहना था कि बुरी चीजों को मैं तुरत भूल जाता हूं, इसलिए मैं मैं हूं....एंड यू मे बी सो.....बी पॉजिटिव, बी एवरयंग।

अच्छा तो बहुत लगा पर कुछ बातें खली भी

पूरे कायॅक्रम के दौरान हॉल में लगाए दो छोटे परदे पर प्रोजेक्टर के माध्यम से देव आनंद साहब की चुनिंदा फिल्मों के महत्वपूणॅ दृश्य लगातार दिखाए जा रहे थे, बिना ध्वनि के। हां, गीतों और संवाद के अंग्रेजी अनुवाद परदे पर दिखाई दे रहे थे, लेकिन उन पर ध्यान किसका था, लोगों की निगाहें तो मफलर लपेटे देव आनंद साहब पर ही टिकी हुई थीं और कान उनके शब्दों को सुनने को आप्यायित। तिशानी दोषी चूंकि चेन्नई से बिलांग करती हैं, सो उन्होंने हिंदी में सवाल करने में असमथॅता जता दी थी, जबकि अधिकतर श्रोता अपने पसंदीदा अभिनेता देव साहब को हिंदी में सुनना चाहते थे। आखिरकार हिंदी फिल्मों के सहारे ही तो देव साहब इस मुकाम पर पहुंचे हैं। समझदार लोगों ने तो मोबाइल को साइलेंट मोड पर कर रखा था या फिर स्विच ऑफ ही कर दिया था, लेकिन कुछ बददिमागों के मोबाइल की रिंगटोन बजने से ऐसा ही अहसास होता था जैसे सुस्वादु खीर खाते हुए मुंह में कंकड़ आ जाए, बुरा तो आम श्रोताओं और मेजबानों के साथ इस हैंडसम मेहमान को भी लगा ही होगा, लेकिन उनकी आदत है कि बुराई को वे याद नहीं रखते, मैं तो भूल नहीं पाया सो निकल गई यह बात भी।

आमिर भी आएंगे

विरासत फाउंडेशन की ओर से आयोजित इस विरासत साहित्य उत्सव में 25 जनवरी को आमिर खां की हर दिल अजीज फिल्म तारे जमीं पर दिखाई जाएगी और 26 जनवरी को आमिर खां स्वयं इस कायॅक्रम में शिरकत करेंगे। वे इस फिल्म से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर अपनी बात रखेंगे।

1 comment:

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

बहुत उम्दा टिप्पणी के लिए मेरी बधाई लीजिए.