Thursday, January 17, 2008

रांगेय राघव को सादर श्रद्धांजलि


गुरुवार को प्रसिद्ध साहित्यकार रांगेय राघव की जयंती थी। विरले ही ऐसे सपूत हुए हैं जिन्होंने विधाता की ओर से कम उम्र मिलने के बावजूद इस विश्व को इतना कुछ अवदान दे दिया कि आज भी अच्छे-अच्छे लिक्खार दांतों तले अंगुलियां दबाने को विवश हो जाते हैं। जी हां, यह महान विभूति थे पंडित टी.एन. वीर रंगाचार्य के परिवार में 17 जनवरी, 1923 को जन्मे अजस्र प्रतिभा के धनी रांगेय राघव। उपन्यास, कहानी, कविता, आलोचना, नाटक, रिपोर्ताज, इतिहास-संस्कृति तथा समाजशास्त्र, मानवशास्त्र और अनुवाद, चित्रकारी, ...यूं कहें कि सभी विधाओं पर उनकी लेखनी बेबाक चलती रही औऱ उससे जो निःसृत हुआ, उससे साहित्यप्रेमी आज भी आनंदित होते हैं, प्रेरणा लेते हैं। 12 सितम्बर 1962 को उनका शरीर पंततत्व में विलीन हो गया, लेकिन उनका यश आज भी विद्यमान है। ३९ वषॅ की अल्पायु में डेढ़ सौ से अधिक कृतियां भेंट कर निस्संदेह उन्होंने सृजन जगत को आश्चर्यचकित कर दिया। बंगाल के अकाल की विभीषिका पर रिपोर्ताज `तूफानों के बीच´ में उन्होंने जो कीर्तिमान स्थापित किया, वह आज भी अविस्मरणीय है।

उनकी कुछ प्रतिनिधि कृतियां ये हैं---
कब तक पुकारूँ, धरती मेरा घर, पथ का पाप, प्रोफेसर, रत्ना की बात, लखिमा की आँखें, लोई का ताना, मेरी भव बाधा हरो, भारती का सपूत, देवकी का बेटा, यशोधरा जीत गई, घरौंदा।

उनकी प्रत्येक कृति बेजोड़ है, पर गदल कहानी सबमें विशिष्ट स्थान रखती है। इसमें भारतीय नारी के स्वाभिमान व जुझारू व्यक्तित्व का बड़ा ही सजीव चित्रण किया गया है। आप भी लीजिए इस कथा का आनंद।

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