Sunday, January 13, 2008

प्रज्ञाचक्षुओं ने बहाई काव्य सरिता


हर शहर की अपनी फितरत होती है, गुलाबी नगर की भी है। मकर संक्रांति यूं तो पूरे देश में मनाई जाती है, लेकिन जयपुर में इन दिनों पतंगबाजी का सुरूर सा छाया रहता है। पूरा आसमान पतंगों से अट जाता है। मकर संक्रांति के दिन घरों में रहता है सन्नाटा और छतें हो जाती हैं आबाद। डीजे की धुनों के बीच दिनभर बच्चे-युवा और यहां तक कि बुजुगॅ भी पेंच लड़ाने में व्यस्त रहते हैं। नाश्ता-भोजन भी छतों पर ही पहुंचा दिया जाता है, बीच-बीच में चाय-कॉफी के दौर भी चलते रहते हैं।
हां, तो मैं तो कुछ और कहना चाहता था लेकिन अपनी आदत से लाचार लीक से भटक गया। तो मैं बता रहा था कि मकर संक्रांति के उल्लास के बीच ही जयपुर के प्रज्ञाचक्षु कवि नरेंद्र कुमार शरमा-कवि-ने १२ जनवरी शनिवार की शाम जवाहर कला केंद्र के रंगायन सभागार में अंतरराष्ट्रीय दृष्टिहीन एवं विकलांग कल्याण संस्थान जयपुर के बैनर तले अखिल भारतीय हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया। इसमें काव्यपाठ करने वाले सभी कवि प्रज्ञाचक्षु ही थे। इन्हें सुनने के बाद यह ऐलान तो किया ही जा सकता है कि इन्हें नेत्रहीन तो नहीं ही कहना चाहिए, दृष्टिहीन भी नहीं कहा जाना चाहिए। जीवन के प्रति इनकी दृष्टि जिसे हम विजन भी कहते हैं, हम आंख वालों से बढ़कर ही हैं।
तो आप भी लीजिए कुछ कविताओं का आनंद -

सूरज लहू-लुहान समंदर में गिर पड़ा,
दिन का गुरूर खत्म हुआ शाम हो गई।
के साथ उत्तर प्रदेश के सीतापुर से आए मनोज वाजपेयी ने अपने तेवर स्पष्ट कर दिए थे।
प्रस्तुत है उनकी यह कविता---

तन्हाइयों को दूर हटाने की बात कर,
मिलने की बात कर तू मिलाने की बात कर।
वादे हजार कसमें बेशुमार यूं न खा,
दो-चार कदम साथ निभाने की बात कर।
जन्नत के ख्वाब छोड़ दे परियों की कहानी,
आ बैठ मेरे पास ठिकाने की बात कर।
दुनिया बना रही है चांद-तारों का महल,
तू सिफॅ इस धरा को सजाने की बात कर।
गुजरी तमाम उम्र ये पूजा-नमाज में,
अब दो दिलों के फकॅ मिटाने की बात कर।
दुनिया सुलग रही है नफरतों की आग में,
तू प्यार की सौगात लुटाने की बात कर।
जख्मी है कदम ठोकरों की सख्त मार से,
इस हाल में न हाथ छुड़ाने की बात कर।
जिनके दिलों में प्यार है बातों में रंज है,
उनको मनोज मन से मनाने की बात कर।

मनोज वाजपेयी ने कुछ यूं स्वर बदले-----

दिल में अजीब ददॅ जलाकर चला गया,
तूफानी जलजला कोई आकर चला गया।
खंजर थमाए पेट की रोटी को छीनकर,
भूखों पर सेमिनार कराकर चला गया।
मैंने दीये जलाये उसकी आवभगत में,
वो मेरे घर को आग लगाकर चला गया।
ये भी महज मनोज एक इत्तेफाक है
कि मेरी गजल इनाम वो पाकर चला गया।

इन्होंने हर छोटे-बड़े मसलों पर --जाने दो---की हमारी सहज प्रवृत्ति पर कुछ यूं चुटकी ली---

जब जुमॅ की ललकार पर इंसाफ बिल्कुल मौन है,
चुप तुम नहीं, चुप हम नहीं तो तीसरा फिर कौन है।

समाज में तथाकथित शक्ति-वैभव संपन्न तबके को मनोज ने यूं आईना दिखाया--
तूफान किसी को क्या देगा, मैं मंद पवन सारी दुनिया के जीवन का आधार बनी।

-मुझे अनुग्रह नहीं चाहिए मुझे नहीं अभिलाषा वर की-
के साथ कोटा से आए राजेश गौतम ने कुछ यूं फरमाया---
जिसमें दुख ही दुख होता है वो मुस्काना बाकी है,
सब कुछ खो देने की हद तक तुझको पाना बाकी है।
धान पड़ी है चिड़िया भूखी, फिर भी इक तिनके की चाहत,
मां होने की तकलीफों का बोझ उठाना बाकी है।
रहिमन वाले धागे वाली गांठ ने हमने टूटने दी,
पर कबिरा के चादर वाली ताना-बाना बाकी है।
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लाख इंसान चाहे तो क्या है, वक्त पर जोर चलता नहीं है,
साथ देती है दुनिया भी जब तक, कोई मतलब निकलता नहीं है।
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दो घड़ी और बतियाने दो, ज्योति अपनी फैलाने दो
सूरज थोड़ा और ठहर जा, सांझ अभी न ढलने दो
के संदेश के साथ बाड़मेर से आए विष्णु खंडेलवाल ने माता-पिता के प्रति हमारे कतॅव्य का अहसास कराया---
जग में यदि कुछ भूल भी जाओ तो भूल नहीं है पाप,
पर मां-बाप को भूल न जाना, यह भूल नहीं है माफ।
पिता देव माता को देवी जग में जिसने जाना,
तन-मन से सेवा कर उनकी वह अमर हुआ जग जाना।
दौलत से क्या नहीं मिलता है नहीं मिलता सब संसार,
पर मां-बाप नहीं मिलते हैं न मिलता वैसा प्यार।
जीते जी नित इनकी सेवा कर लें हम और आप,
पर मां-बाप को भूल न जाना यह भूल नहीं है माफ।

प्रतापगढ़ के राजेश जोशी ने अपनी भावनाएं हमसे यूं शेयर की---

हर गम से हो आगाह जरूरी तो नहीं है,
हर राही हो गुमराह जरूरी तो नहीं है।
संतोष कुमार ने अपनी चाहत यूं बयां की---
हमको पूरी धरा ना कोई गगन चाहिए,
अप्सरा न कोई गुलबदन चाहिए।
इसके बाद उन्होंने---हे राम अयोध्या मत आना---के माध्यम से वतॅमान परिवेश में व्याप्त विसंगतियों पर तीखा कटाक्ष किया।
जयपुर के प्रिंस बड़जात्या ने-
नन्हीं किरण की पुकार, मुझ नन्हीं किरण को आने दो,
ज्योति अपनी तुम फैलाने दो
से अपनी उपस्थिति दरशाई।
इनके अलावा तालेश्वर मधुकर, खेमकरण कश्यप, रामखिलाड़ी स्वदेशी, मनमोहन तिवाड़ी, उदयपाल सिंह, शुभांगी पांडे, बाबूलाल सरोज, महेश, रामावतार शरमा, कुसुमलता ने भी अपनी कविताओं से काव्यरसिक श्रोताओं को झुमा दिया। एक-एक मुक्तक पर तालियों से श्रोताओं से खचाखच भरा सभागार गूंज रहा था। राजस्थान के समाज कल्याण मंत्री मदन दिलावर पूरे समय मंच पर बैठे रहे और शिद्दत के साथ न केवल कविताएं सुनाईं बल्कि उनकी हौसला आफजाई भी की। जयपुर के सांसद गिरधारीलाल भागॅव के साथ नगर के गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति से कायॅक्रम अपने शबाब पर था। इस सफल कवि सम्मेलन का बहुत ही अच्छा संचालन जयपुर की कवयित्री और शायर शोभा चंदर ने किया। मैं भरसक प्रयास करूंगा कि इस कवि सम्मेलन की और कुछ श्रेष्ठ कविताएं आपके सामने प्रस्तुत करूं क्योंकि ऐसे प्रतिभावान कवि कम ही मिलते हैं और ऐसे आयोजन तो मुश्किल से ही हो पाते हैं।

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